कुछ समय से एक बात मेरे मन में है, कि what kind of a platform is Facebook?
जहां मैं अपने मन कि कुछ बातें लोगों से कहता हूँ । कुछ उसे पसंद करते हैं, नापसंद करने कि ज्यादा गुंजाइश
नहीं होती । पसंद-नापसंद से फर्क नहीं पड़ता लेकिन ज़रूरी यह है कि फर्क पड़ता हो मेरी कही बतों का । कुछ लोग जो किताबी कीड़े हैं Facebook के, कुछ जिन्हें ठीक लगता है अपने पलों को दूसरों के साथ खिचवाइ गयी तस्वीरों में बाँटना, उन्हें Facebook ने social interaction का एक नया platform दीया है, जहाँ उन्हें Social beings के नाम से परिभाषित किया जाता है । उन तस्वीरों को Instagram जैसे नाये अायाम दीये जाते हैं । इन सब नयी-नयी बातों ने इतना भर दिया है दुनिया को कि अहसास कम होने लगा है अौर उसका Notification ज्यादा । Facebook पर अब जो भी कुछ लिखता हूँ, instagram जैसा कोई नया photo filter लगा देता हूँ ।
शायद लेखन के लिये Facebook ठीक platform नहीं ।
शायद मैंने लिखना इसलिये बढ़ा दिया है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उसे पसंद करें । सिर्फ पसंद-नापसंद होना ही मापदँड हो गया है लेखन का । उस पर कोई विचार नहीं किया जाता, कोई critisim नहीं होती, तो यह बात तय है कि Facebook विचार करने का platform नहीं । हाँ! विचार करके Status डालिये ना की उलटा । मैं भी होशियारी के साथ Hinglish का Use करता हूँ अपने लेखन में, चयन कर चुनता हूँ शब्दों को, Sepia वाला photofilter लगाता हूँ लिखते वक्त, ताकी बहुत सारे लोग उसे पसंद करें । इसके लिये एक Universal भाषा आनी चाहीये । लेकिन यह तो commercial writing जैसा हो गाया जिसपार विचार नहीम किया जाता, सिर्फ पसंद या नापसंद होने की गुंजाइश होती है । आजकल, गुल्ज़ार साहब बहुतों के लिये Instagram कवी हो गये हैं । Facebook generation की बात यह है कि अब किसी भी बात पर कम फर्क पड़ता है, बस भर लेना होता है किसी Pinterest wall पर उन तस्वीरों को जो हमें पसंद हैं । ज़रूरी नहीं कि वो तस्वीरें हमारे बारे में कुछ जरूरी बातें बताती हो या हमारा intellect बढ़ाती हों ।
या तो एक बात पर गहन-विचार किया जा सकता है या हज़ार नयी बातों से नज़रिया बढ़ाया जा सकता है ।
Facebook ने नज़र का दायरा इतना बढ़ा दीया है कि सही-गलत कि पहचान नहीं हो पाती, भ्रम होता है कि सभी कुछ पसंद आ रहा है, नापसंद की तो ज्यादा गुंजाइश नहीं है ।
यही कुछ बातें हैं Facebook Friend list में फसे कुछ thumbnail चहरों के बारे में । मुझेअपना चहरा बड़े आइने में देखना है, photofilters उतारकर कुछ नापसंद बातों को कहने है । फिर उन बातों को अाप पसंद करें तो खुशी होगि कि अापने विचार कीया । जो मजबूर हो रहे हैं कुछ कहने के लिये उनके चहरे thumbnails से बाहर अा जायेंगे, उनकी तस्वीरें सही में कुछ बोलने लगेंगी ।
दीवार पर सर मारने से सर ही फूटेगा, तो अपने intellect को पसंद-नापसंद से ऊपर ले जायें
कि अगली बार जब दीवार को सर मरें तो दरार पड़ जाये ।
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