Friday, March 26, 2010

एक लड़का था, एक लड़की थी

एक लड़का था, 
एक लड़की थी
लड़का नादान,
लड़की पगली थी
नादान माँगे ये पागलपन अनोखा
बढ़ती लड़की ने जाना 
नादानीयत का धोखा

ये नए ज़माने के वो दो चहरे हैं
जो हर बारिश अपने घरों से दूर रहते हैं

दोनो मिले
सिक्के के दो पहलू की तरह
सूरज अौर चाँद से रहे
पूरे दिन के फासले की तरह
शँख-नाद बज उठे 
पगली ने सभी घुँघरुअों से पग में ही
समझौते कर लिये

मौसम बदला
आइ बारिश
नादान ने करी 
अपने दिल कि सिफारिश
लड़की ने फैलाया अपना पागलफन
साँझ पर लड़के का टूटा मन

पागलफन...
नये ज़माने कि भाषा बनी
नादान अौर पगली में कुछ अौर ठनी
दुनीयावाले सब देखते रह गए
नादानीयात के सभी सबूत
धारा बनकर बह गए

आसमान अब खाली है
ना सूरज, ना चाँद है
इस मनोरंजन पर ज़माने की बजती ताली है ।
यही तो वो कहानी है
जिसका नाम जवानी है
जिसमें एक लड़का है, एक लड़की है
लड़का होशीयार अौर लड़की अगली है ।

4 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice...

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

kyaa baat hai bhyi.....

kshama said...

Anek shubhkamnaon sahit swagat hai..

Anonymous said...

good.....
kuchh line samajh nahi aayi..sorry..
i'll try to understand...