Thursday, October 21, 2010

मेरे दिल का छोटा साहुकार

मेरे दिल का छोटा साहुकार
बस छोटा सा ये कारोबार
बड़े प्यार सा डाली ये दुकान
बिकता जिसमें एक सामान

दाने हैं बस नाम के मेरे
बिकते नहीं हैं शाम-सवेरे
धंधे में कुछ मंदा हूँ मैं
बस पाव-भर-इश्क़ का बन्दा हूँ मैं

हाल-ए-Business ना पूछिए जनाब
कि बिखरे दानो का परिंदा हूँ मैं
क्या करूँ मैं
उठेगी अब दुकान
बिकेगा सस्ते भाव सामान
धंधे में कुछ मंदा हूँ मैं
बस नामालुम-सा बन्दा हूँ मैं
बेच ना पाऊँगा बस एक सामान
जिसपर टिकी है सारी दुकान

वो पाव-भर-इश्क़ ना बिकेगा यार
जब तक ना कोई करे उधार
अजीब है दिल कि मारा-मारी
निकल रही है क़सर हमारी
वो भी कहे तो कैसे बेचारी
उसे नामालुम है हालत हमारी

भाव लगा है मेरे दिल का आज
करें तो कैसे करें उधार
यह पाव-भर इश्क़ का कारोबार
दाना-दाना ही रहेगा यार
 
मेरे दिल का छोटा साहुकार
करे छोटा सा यह कारोबार ।
  

चौक


कविता कि चौक पर चिड़ीया अाए
आदि से अंत सौ चक्कर लगाये
डाली तिन्का चौंच में दबार
भागती बीड़ से बच-बचाकर
गिरती धूप सी,
उठती डूल कि तरह
उड़ती-उड़ती जाये
शाम से पहले बस चौक तक पुँच जाए

चौक के उपर घौंसला झूल रहा है
कोई कहीं गिद्ध तो नहीं उड़ रहा है?
बिजली के खंबे
साबुत खड़े हैं, ऊँचे
अंतकाल तक आकाश में लकीरें खींचे
कि इस कविता कि तरह
फिर कब कोई चिड़ीया 
उड़ती-उड़ती आए
अौर पंक्तीयों में फंसर
अपना घौंसला बनाये

Thursday, October 7, 2010

Tehelte huye...

Tehelti baaton mein guzar jayenge meel,
kuch patthar door mera chai..n pada rakha hai
hatheliyon se meri,
bhanp bankar
ghulta rahoonga is baar bhi,
Hathon mein intezar ko jakad kar
pant ki jeb mein jo daba rakha hai

Nayan ka pani
tumhare ainak hain chupaye,
fir chai..n, mera kyun bheegta jaye?
raste bhar ki doori
kadmon ki ghadi se ghabra rahi hai
ki abhi to nikle the,
aur humein wapas ane ka samay bata rakha hai

Raat ki shanti aur
roshni ki bedhadak awaz ko
hawa mein ghulte aur bedakhal hote huye
pehle to kabhi nahin dekha gaya
Itni si baat hai 
ki zuban par sile labz ke dhage
utne hi barik aur utne hi pukhta hain
jitna tere chehre ka ,
kuch door...
do patthar aage
bechai..n hota...
chai..n pada hai

Tehelti baton mein guzar gaya ek meel
chulbuli baton ne sama to bandhe rakha hai
par nami bhare mere haath
aur tere ainak mein jhilmil nayanon ne
humse zaroor kuch chupa rakha hai.


Tuesday, July 20, 2010

Bulati hain awazien, ruk jata hoon main...
pairon ke nishaan to manzil ko paa chuke hain,
Gambhir sa chehra aur kadamm kuch pareshan
awazon se bayaan, hum manzil tak aa chuke hain

Friday, March 26, 2010

एक लड़का था, एक लड़की थी

एक लड़का था, 
एक लड़की थी
लड़का नादान,
लड़की पगली थी
नादान माँगे ये पागलपन अनोखा
बढ़ती लड़की ने जाना 
नादानीयत का धोखा

ये नए ज़माने के वो दो चहरे हैं
जो हर बारिश अपने घरों से दूर रहते हैं

दोनो मिले
सिक्के के दो पहलू की तरह
सूरज अौर चाँद से रहे
पूरे दिन के फासले की तरह
शँख-नाद बज उठे 
पगली ने सभी घुँघरुअों से पग में ही
समझौते कर लिये

मौसम बदला
आइ बारिश
नादान ने करी 
अपने दिल कि सिफारिश
लड़की ने फैलाया अपना पागलफन
साँझ पर लड़के का टूटा मन

पागलफन...
नये ज़माने कि भाषा बनी
नादान अौर पगली में कुछ अौर ठनी
दुनीयावाले सब देखते रह गए
नादानीयात के सभी सबूत
धारा बनकर बह गए

आसमान अब खाली है
ना सूरज, ना चाँद है
इस मनोरंजन पर ज़माने की बजती ताली है ।
यही तो वो कहानी है
जिसका नाम जवानी है
जिसमें एक लड़का है, एक लड़की है
लड़का होशीयार अौर लड़की अगली है ।